शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

हमारे भगवान का होता अपमान और पीके पर सवाल यह कैसी मानसिकता

हमारे धर्म का कोई अपमान करे हमारे देवी देवताओं की मूर्ति के साथ कोई छेडछाड करे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते और होना भी यही चाहिये।

क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि हम स्वयं अपने देवी देवताओं का कितना अपमान करते है अगरबत्ती के पैकेट से लेकर दीवाली के पटाखों में हमारे देवी देवताओं के चित्र बनकर आते है और हम उन पटाखों को धडाम धडाम धडाम छुटाते है।

अगरबत्ती खत्म हो गयी पैकेट बेकार हो गया उसमें भगवान का चित्र रहता है हम उस पैकेट को कहा फेकते है कूडेदान या किसी रास्ते में और वह पैकेट राह चलते राहगीरों के पैरों तले आता है।

क्या इन तथ्यों पर भगवान के इस अपमान पर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के द्वारा अपने ही धर्म का अनजाने में किये जाने वाले अपमान पर किसी बडी पार्टी किसी सेक्युलर या कम्युनल या किसी नवयुवक या वह मैं ही क्यूं ना हूं हमारा ध्यान जाता है क्या ?

वह क्यूं नहीं होता क्यूंकि इन मुद्दों से राजनीति नहीं हो सकती होगी भी तो टुटपुंजिहा राजनीति इससे धन नहीं ऐंठा जा सकता है यह तो समाज सुधार जनजागरूकता का काम है इनके मालिकों का अतापता नहीं रहता है और किसी दूसरे धर्म से हो यह भी आवश्यक नहीं कुलमिलाकर के एक बडा राजनैतिक मुद्दा नहीं बन सकता।

इस आधार पर हम किसी को असली सनातनी नकली सनातनी भी नहीं घोषित कर सकते है सब काम धाम नाम घोषणाओं का है अपने अस्तित्व को बडा दिखाने का है कोई जनसंख्या में बडा दिखाना चाहता है तो कोई क्वालिटी में धर्म के नाम पर बडे बडे नेता बडे बडे भाषण कभी बच्चे ज्यादा पैदा करो कभी बच्चे कम पैदा करो जो है उनका कुपोषण उनकी शिक्षा उनकों रोजगार कोई दे नहीं पा रहा किसान से लेकर नवयुवक तक अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते है।

आप ये मूर्ति देख रहे है इसे हमारे द्वारा ही एक कचडे के ढेर के पास फेंका गया है ये टूट चुकी है अब इनकी पूजा नहीं कर सकते क्या पता इन्होंने प्राण प्रतिष्ठा करायी हो या नहीं और फेकने के समय भगवान से अनुनंय विनय की हो या नहीं कि अब प्रभु आप वापस जाओ और इस मूर्ति को क्या ऐसी अनेको मूर्तियां दिख जायेंगी जिनका स्थान कूडादान नहीं है लेकिन हमारे धर्म के हमारे भगवान के सम्मान की लडाई हम स्वयं से नहीं लड पाये बल्कि दूसरों से लडने में व्यस्त अधिक रहे क्यूंकि सब वर्चस्व की बात है।

महान सिद्ध करने के लिय हम दूसरों को नीचा दिखाते है यह कहानी सभी की है वह किसी भी धर्म से हो हम स्वयं में सुधार नहीं करते दूसरों में कमियां निकालते है और अपमान के मुद्दे पर राजनीति करना हमारे राष्ट्र का सौभाग्य है विकास का दुर्भाग्य है रोजगार के लालों को रोजगार के लाले है दो वक्त की रोटी के टोटे है फिर भी हम महान है।

नोट- पीके जैसी मूवी बनने के पीछे कारण हम ही है ऐसी बहुत सी मूर्तियां और भगवान के हालात आपको दिख जायेंगी बस सिर्फ राजनीति करना अलग बात है।

बुधवार, 7 जनवरी 2015

फेसबुक में महिला सशक्तिकरण की एक आवाज

आजकल फेसबुक में नारी स्वतंत्रता नारी सशक्तिकरण की बातें एक आंदोलन का रूप ठीक उसी तरह से लेती जा रही हैं जैसे अंग्रेजों से गुलाम भारत को आजाद कराना था।
ऐसे विचार देख सुन पढकर बहुत खुशी होती है कि नारी अब अबला नहीं सबला होने जा रही है। जिस राष्ट्र में सदियों से कहा जाता है "यत्र नारी पूजयेत् तत्र रमंते देवता" उसी राष्ट्र में नारी की दुर्दशा हो रही हो आये दिन बलात्कार हत्या छेडखानी के मामले प्रकाश में आते हैं। पडोस से लेकर सडक तक और आफिस तक जहां देखें वहीं नामर्दों का घूरना और वासना की लालशा जाग्रत रहती है इन सबके खिलाफ नारी अब जाग्रत हो रही है तो बुराई क्या है।
नारी अब ड्रेसकोड के विरूद्ध भी जाग्रत हो रही है अब साड़ी और नारी की स्वछंदता बढती जा रही है वह साड़ी में नारी नहीं दिखना चाहती उसे भी स्वतंत्रता चाहिए फुल जींस हाफ जींस फुल शर्ट हाफ शर्ट लोअर टी शर्ट पहनने की आखिर नारी क्यूं ना पहने अब पुरूष भी तो धोती कुर्ता नहीं पहनते जब धोती कुर्ता वाला पुरूष नहीं तो साड़ी वाली गुलाम मानसिकता की नारी क्यूं देखना चाहते हो ?
नारी कोई राष्ट्र नहीं जिसे गुलाम बनाओ नारी कोई संपदा नहीं जिसका तुम मर्जी अनुसार उपभोग करो नारी कोई विस्तर नहीं जिस पर जब मर्जी आये पैर पसार के सो जाओ नारी भी जीव है प्राणी है उसका सम्मान करना सीखो।
     महिला सशक्तिकरण नारी स्वतंत्रता वाले किसी एक विचार से मेरी बहुत कम पटती या यूं कह लो बहुतायत मेरे सीने में कौतुहल बनकर रहता है। नारी नशा क्यूं ना करे। अरे पुरूष वियर पीते हैं तो हम वियर क्यूं ना पिये पुरूष सिगरेट पीते तो हम सिगरेट क्यूं ना पिये हम गुटका क्यूं ना खायें अगर यही स्वतंत्रता और समानता का पैमाना है तो निडर होकर खायें पियें मुझे व्यक्तिगत कोई समस्या नहीं है लेकिन एक विचार मन में कौध सा गया महाभारत में एक कथानक है वीर अभिमन्यु अपनी मां के कोख में रहते हुए चक्रव्यूह के द्वार तोडना सीख गया था लेकिन मां बताते सो गई थी जिससे अभिमन्यु को अंतिम द्वार तोडने का ज्ञान नहीं था परंतु धर्मयुद्ध था उसे अपनी वीरता का परिचय धर्म की विजय हेतु देना आवश्यक था और परिणाम अभिमन्यु क्रूर कौरवों का शिकार हो गया।
स्त्री को प्रकृति प्रदत्त गर्भ प्रदान है और शिशु अपने अमूल्य जीवन के प्रथम नौ महीने मां के गर्भ में गुजारता है और उसी गर्भ में अभिमन्यु के सरीखे ज्ञान संस्कार अर्जित करता है अगर स्त्रियां अधिक से अधिक मात्रा या कम से कम मात्रा में वियर सिगरेट गुटका खायेगी पियेगी तो क्या गारंटी है गर्भस्थ शिशु पर उसका असर ना पडे जब मां भोजन ग्रहण करती है तो उसी भोजन का तिनका गर्भस्थ शिशु ग्रहण करके जीवित रहता है यानी कि जब मां गर्भित रहती है तृ उसके क्रियाकलापों विचार कुविचार संस्कार कुसंस्कार का असर सीधा सीधा गर्भस्थ शिशु को प्रभावित करते हैं और अगर मां किसी गलत रास्ते पर रहेगी तो हमारी आने वाली पीढियां कैसी होगी एक अभिमन्यु तो सिर्फ इसलिये मारा गया कि उसकी मां अनजाने में सो गयी थी लेकिन अगर पुरूष की गलत बराबरी के चक्कर में नारियां गलत अनुकरण करेंगी तो भविष्य में यह पूरा संसार ही जुआरी शराबी अपराधी हो सकता है क्यूंकि मां के क्रियाकलापों का असर गर्भस्थ शिशु पर अवस्य पडते हैं यह सिर्फ पुरातन आध्यात्मिक ही नहीं आधुनिक वैज्ञानिक सत्य भी है।

नोट- मैं अज्ञानी हूं अभी सीख रहा हूं मैंने कुछ गलत लिखा हो तो मेरी बहनें ,दोस्त मेरा मार्गदर्शन करना मुझे माफ करना मै आपकी प्रत्येक स्वतंत्रता के साथ हूं।

फेसबुक की दोस्ती वा रिश्ते एक क्लिक के मोहताज

ये फेसबुक इसकी दोस्ती इसका रिश्ता क्या कुछ ना देखा इतना कुछ देखा सुना और जाना जो शायद सपने में भी नहीं सोचा था जीवन में कल्पना भी नहीं की थी मैं कहीं रहूं और वहां से मुझे दर्द ना मिले ऐसा कैसे संभव हो सकता है।

क्या कहूं आप सभी से किन भावनाओं से कहूं समय परिस्थितियों ने मुझे क्या कुछ ना सिखाया सच कहूं तो मैं कहना भी नहीं चाहता और शायद मुझे दर्द भी नहीं फिर भी मैं सोचता हूं उनके बारे में जिन्हें बहन माना था जिनके पैर छूने में मुझे बिलकुल भी संकोच नहीं हुआ था क्या पता उन्होंने मेरे पैर छूने को किस भाव से लिया हो लेकिन मेरे हृदय में उनके लिये अगाध सम्मान था है और रहेगा उन्होंने मुझे अपना भाई समझकर आशीर्वाद दिया था या नहीं मुझ अबोध को क्या पता मैं तो यूं ही किसी ना किसी शाम को किसी ना किसी सुबह ढलते सूरज उगते सूरज की लालिमा के साथ अपनी उन बहनों को याद कर लिया करूंगा सच कहूं तो मैं उन्हें याद नहीं करना चाहता लेकिन कहते हैं ना हृदय और भावनाओं पर किसी का जोर नहीं होता ऐसी ही मेरी एक बुआ भी बनी थी जो मुझे अपना भतीजा कहती थीं अक्सर उन्हें भी याद करता हूं उनकी भीनी भीनी मुस्कान अक्सर मुझे मोहित करके मेरे होठों में मुस्कान बिखेर कर निकल जाती हैं।

जुकरबर्ग ने तो क्लिक करते ही आप्शन रखा है अनफ्रेंड और ब्लाक का लेकिन हे भगवान आपने ऐसा क्यूं नहीं किया क्या आप जुकरबर्ग के इतने ज्ञानी नहीं थे कि जिससे रिश्ता खत्म करना हो या जो आपको अपने से दूर करना चाहे या हम किसी को याद ना करना चाहें तो हृदय में एक बटन तो रखी होती जिससे हम उस बटन को फेसबुक की तरह क्लिक करते और ऐसे कुछ रिश्तों को भूल जाते जिनके योग्य हम ना होते।

मैने जिन्हें माना था माना है हृदय की भावभंगिमाओं में बिठाकर माना है। मेरी बचपन से ही आदत है अपनी बात स्पष्ट तरीके से रख देने की मुझे अपना काम निकालना प्रेम मुहब्बत और जरूरत पडने पर बलपूर्वक भी आता है लेकिन रिश्तों में चापलूसी कभी नहीं की जो भी जैसा भी रहा हमेशा सही तरीके से रख दी भले उसमें मेरा कोई नुकसान हो लेकिन मेरा नुकसान शायद ही कोई कर पाये

इस दौरान कुछ एक खुद को भाई कहने कहलाने वाले भी दूर गये कुछ एक मित्र महिला मित्र भी दूर गयीं और एक ऐसी महिला मित्र भी दूर गयीं थी जो वास्तव में मित्रता की पराकाष्ठा में एकदम नजदीक थी लेकिन उन्होंने समझा और वापस मित्र बनीं और मित्रता इसी को कहते हैं नाराज होना बनता है उनका लेकिन अगर मित्रता सच्ची है तो कोई किसी से ज्यादा समय तक दूर नहीं रह पाता।

मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं इस दौरान जो भी हुआ वह एक बुरा और अच्छा दोनों तरह का अनुभव था मैने जिसे भी अपना मित्र अपना भाई अपनी बहन माना पूर्ण मनोयोग से होशोहवास में माना था है मैने किसी की वजह से किसी को कुछ नहीं माना कि वह फला की मित्रता सूची में है तो मेरा मित्र या भाई बहन होगा होगी आप मेरे हृदय में थे और रहेंगे लेकिन इतना ज्ञान अवश्य हुआ कि आपने मुझे अपना नहीं माना था बल्कि किसी और की वजह से कुछ माना था लेकिन जो मेरी बहनें हैं मेरी बुआ हैं अगर जीवन में कभी सामने मिली भी तो मैं वैसे ही झुकूंगा जैसे पहले झुकता था या कभी इनबॉक्स में चरणस्पर्श बोला होगा मेरे एहसास में मेरी नजर में यही रिश्ता है।

मुझसे जो भी गलती हुयी हो क्षमाप्रार्थी हूं परंतु अपनी बात रखने से ना कभी पीछे हटा ना हटूंगा।

इस दौरान एक बहन और जीजाजी भी मिले जो मुझे आज भी उतना ही प्यार करते हैं जितना पहले दिन करते थे मैं नाम नहीं लूंगा दीदू और जीजाजी पढते ही समझ जायंगे।

नोट- इसे किसी भी प्रकार से गलत अर्थों में ना लें यब गिनती की बहन बुआ भाई मित्र के लिये है ना किसी समूह परिवार रिश्तों के लिये।

स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत

स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत में स्वच्छ गांव स्वस्थ गांव एक बडी चुनौती है। स्वच्छता स्वस्थता का यह मिशन हम इंसानों में सर चढकर बोल रहा है लेकिन पिछले वर्ष के दो अक्टूबर से अबतक यह एक शहरी प्रोग्राम ही नजर आ रहा है वह भी सोशल मीडिया और प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जब कुछ नवयुवकों को झाडू लगाते देखते है।

गली और नाली की साफ सफाई से स्वच्छता तो आ जायेगी और कुछ किटाणु विषाणु के मर जाने से बीमारियां भी कम होगी स्वच्छता के मायने यहां तक तो सही है लेकिन स्वस्थता के मायने बहुत विस्तृत है जैसे की भारत से कुपोषण जड से खत्म होना चाहिये।

बच्चे समाज की रीढ की हड्डी होती है जिन बच्चों का जन्म होता है उन नवजात शिशुओं में कुछ की मृत्यु जन्म के समय ही हो जाती है और कुछ की कुछ समय पश्चात उनमें से बहुत सारे बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है।

मध्यम वर्गीय अमीर घर आज भी भारत में बहुत कम ही है एक सर्वे के अनुसार 2039 तक भारत में वास्तविक मध्यम वर्गीय परिवार होगें और या उससे ज्यादा भी समय लग सकता है।

आंगनवाडी का एक घोटाला पिछली महाराष्ट्र सरकार के मंत्रालय में किस कदर हुआ वह किसी से छिपा नहीं यह सिर्फ एक घोटाला नहीं नवजात शिशुओं की मौत और गर्भवती मां के लिये अशुभ है।

बालपोषाहार इस हेतु ही आता है कि उसे खाकर बच्चों का कुपोषण खत्म हो सके लेकिन वह बालपोषाहार पात्र बच्चों तक ना पहुचकर बाजार में औने पौने दाम पर बिक रहा है ऐसे ही हालात संपूर्ण राष्ट्र में नवजात शिशु आज भी कुपोषण के शिकार है जबकि अफसर मोटापे के शिकार हो गये भ्रष्टाचारी नेता हाथी पेट वाले हो गये लेकिन राष्ट्र के भविष्य राष्ट्र का वर्तमान बनने से पहले ही जिंदगी और मौत की लडाई लडते है।

गांवों उचित प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधायें ना होने से बुजुर्ग और नौजवानों के भी यही हाल और दवा कराने को दूर अस्पताल में जाना पडता है तबतक हालात क्या होते है कोई बीमार व्यक्ति ही बता सकता है।

इसलिये इस क्षेत्र में अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है दिखावे के दीमक को खत्म करना होगा और वास्तव में काम करके स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत स्वच्छ गांव स्वस्थ गांव बनाना चाहिये।

साईं मंदिर में मेरा पहला अनुभव

आज मैं वह बात लिख रहा हूं जो मैने 31दिसंबर की रात से अबतक नहीं लिखा था और उस रात को कुछ फोटो अपलोड की थी लेकिन यह लिखने की हिम्मत नही थी इसलिये नहीं कि मैं भयभीत था इसलिये की मैं किसी के सवालों का जवाब समयानुकूल नहीं दे सकता था।

मेरी सोच समझ यही कहती है कि हमें सबकुछ अपनी आंखों से देखना चाहिये और अपने दिमाग से विचार करना चाहिये और हृदय से एहसास करना चाहिये कि क्या सही है और क्या गलत है।

मुझे पहले भी बहुत बार अवसर मिले थे कि शिरडी चलो लेकिन व्यस्तता के चलते मैं उन अवसरों को भुना नहीं सका क्यूंकि काम भी आवश्यक रहता था मैने भी साईं बाबा का नाम बहुत सुना था और जिज्ञासा थी दर्शन करने की और इस वर्ष मुझे यह अवसर तब मिला जब एक बडी धर्म संसद लग चुकी है।

नि:संदेह साधु संत महान है मुझे उनकी योग्यता पर शक नहीं उनके कहे हुये पर शक नहीं लेकिन सच को हम अपने हृदय से ही एहसास कर सकते है मैं वेदों का ज्ञाता नहीं लेकिन अपने सीने में धडकती हुयी धडकनों का एहसासों का ज्ञाता हूं मेरी धडकने क्या कहती है यह मुझसे ज्यादा कोई और जान ही नहीं सकता भले डा. आला लगा ले सिर्फ वह धडकन की गति का एहसास कर सकता है लेकिन वह कहती क्या है सिर्फ मैं ही एहसास कर सकता हूं।

मैं वह लडका हूं जो लाइन में लगने से आजतक डरता रहा अपने जीवनकाल में अबतक मैं जल्दी लाइन में नहीं लगा या तो सबसे शुरूआत में काम कराया या फिर सबसे अंत में लेकिन लाइन में लगने से बहुत दिमागी चिंता होती है मुझे।

मैं अपने जीवन में एक्तीस दिसंबर की रात 2:00 बजे पहली बार लाइन में लगा वह भी जबरदस्त भीड में उस भीड को देखकर हमारे दो मित्र हाटेल वापस हो लिये लेकिन हम तीन एक साथ डटे रहे मैं नाम नहीं लूंगा उनका क्यूंकि यहां सिर्फ मैं ही जवाबदेह हूं और मेरी ही व्यथा है।

जीवन में पहली बार मैं 7:00 घंटे लाइन में रहा कभी कभी बैठ भी जाता था पैर बहुत तक चुके थे शारीरिक थकान बढती जा रही थी दिल दिमाग सब परेशान हो रहे थे लेकिन मेरे मन में था कि मुझे दर्शन तो करने ही ह जिसके लिये हंगामा हुआ वहां भीड देखते बनती थी इससे यह स्पष्ट हो रहा था कि बहुत से श्रद्धालु है जो सिर्फ अपने दिल और दिमाग से चलते है और होना भी चाहिये।

मेरे लिये यह चुनौती इसलिये है कि मैं सभी की नजरों में कुछ और ही हूं लेकिन मैं अपनी नजरों में क्या हूं यह मुझे ही पता है। लगभग सात घंटे के बाद मैं बाबा के सामने था और बाबा मेरे सामने थे मैने बाबा के आंखों से आंखें मिलायी दिल से प्रणाम किया वो इसलिये कि मुझे नहीं पता सच्चाई क्या है बस एक सच्चाई यह है जिसे मैने एहसास किया जिस सौरभ के पैर थक चुके थे जो सौरभ शारीरिक दर्द से व्यथित था वह सौरभ इतना स्वस्थ कैसे हुआ वह ऊर्जा कहां से आयी कि मैं तनकर खडा होने लायक हो गया मेरे मायूस चेहरे में प्रसन्नता कैसे छा गयी ऐसा क्या हुआ था मैं तो सिर्फ देखने गया था कि बाबा कैसे है और मंदिर के अंदर क्या है क्या वास्तव में बाबा वरदान देते है लेकिन मैं कोई वरदान मांगने नहीं गया था।

अपने जीवन का मालिक हूं किसी भी राजनीति कूटनीति से ज्यादा यथार्थ पर जीने की कोशिश करता हूं मैं राजनीति करना चाहता हूं पर अपने आपको धोखे पर रखकर नहीं और जब खुद को धोखा नहीं दूंगा तो कभी किसी को धोखा दूंगा नहीं।

इसलिये मैने खुद को धोखा नहीं दिया मैं बाबा के पास गया नजदीक से देखा मन के स्पर्श से छू लिया बाबा को और बाबा ने मेरी थकान दूर कर दी बस फिर क्या था मैं हमेशा की तरह स्वयं के कल्याण के साथ अपने राष्ट्र अपने समाज के भाई बहन मां मित्र सभी के लिये प्रार्थना की कि इस नववर्ष में सभी को अपार खुशियां देना सभी के काम सफल हों सबके दुखों को हर लेना हमारे राष्ट्र और समाज का कल्याण हो।

*ऊँ साईं राम*

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पशुओं के साथ ब्यभिचार

समय ही सबसे महत्वपूर्ण होता है यह समय ऐसा है कि मेरे मन में इतने विचार चलते रहते है कि लिखने को सोचना पडता किस विषय में पहले लिखूं।

सभी का एक राज होता है और एक रहस्य छिपा रहता है ऐसा ही एक रहस्य मेरा भी है जो मैने आपको नहीं बताया था।

जब उस दिन एर्जेंटीना के ब्यनास शहर गया था आप सभी को शेर की सवारी के बारे में बताया था कि किस प्रकार से खूंखार बब्बर शेरों कि सवारी वहां की जाती है और सच है सतप्रतिशत सच है।

खूंखार बब्बर शेरों को ट्रेनिंग दी जाती है यह बात जू के ट्रेनरों के द्वारा स्वीकर की गयी है लेकिन एक एनीमल एक्टिवेस्टि ने वहां के न्यायालय में मुकदमा दायर किया है कि बब्बर शेरों को एक विशेष प्रकार का नशीला पदार्थ  दिया जाता है।

उस नशीले पदार्थ की ताकत से बब्बर शेर आलसी पृवत्ति के हो जाते है उनके अंदर की खूंखारता एक निश्चित समय के लिये खत्म हो जाती है।

हम इंसान कितने स्वार्थी हो चुके है कि अपनी कमाई के लिये हम बब्बर शेरों के साथ दुराचार कर रहे है उनके स्वभाव के साथ ब्यभिचार कर रहे है।

नशा सिर्फ नशीले पदार्थ का नहीं होता एक नशा चाय का जो अंग्रेज हमें दे गये और मैं भी चाय के नशे का शिकार हूं परंतु मैं किसी को शिकार बनाता नहीं हूं।

एक नशा विचारों का होता है हर एक इंसान किसी ना किसी विचार के नशे में डूबा होता है और विचारों का ये नशा धार्मिक उन्माद भी पैदा करता है और कुछ लोग लाशों की सवारी करते हैं।

सिर्फ धार्मिक उन्माद ही नहीं कोई कोई इंसान ऐसा भी होता है जो अपने निजी विचारों का ही पूर्णतया प्रेम और भावनाओं में अनवरत डुबाता जायेगा और इंसान उन भावनाओं का आदी होने लगता है।

ठीक उसी तरह जब एक लडके को एक लडकी से सच्चा वाला प्यार हो जाये तो वह वही करता है जो लडकी चाहती है हांजी हांजी के सिवाय कुछ नजर नहीं आता क्यूंकि उसकी खुशियां उसकी सांसे हो जाती है उसकी धडकने उसकी मुस्कान से चलती है वह अगर रूठ जाये तो वह आंसूओं की धारा बहा दे आखिर प्रेम भावनाओं में वो ताकत होती है कि बडे से बडे महापुरुष पर्दे के पीछे रो देते हैं।

साधारणतया सर्कस में आप लोगों ने शेरों का खेल देखा ही होगा और जू में भी यही हो रहा था सब खेल नशे का है वह चाहे आतंकवाद हो नक्सलवाद हो माओवादी हो उग्रवादी हों सभी नशेडी है।

और हमारी सरकार इस नशे का हल नहीं ढूंढ पा रही है वह नशामुक्ति अभियान चलायेंगें सराहनीय कदम है लेकिन हम में से प्रत्येक को किसी भी प्रकार के वैचारिक नशे से बचना चाहिये बेवजह ही हा मे हा नहीं मिलाना चाहिये जहां आप शब्दों का अर्थ नहीं समझ किसी के छिपे हुये उद्देश्य को नहीं समझ पाये वही से आपका अदृश्य रूप से धोखा खाना शुरू हो जाता है जैसे जादूगर की नगरी से धोखा खा कर आते है क्यूंकि वहां सिर्फ और सिर्फ जादू होता है जादूगर अपनी कला दिखाता है और आप तीन घंटे बाद खाली दिमाग खाली हाथ पापकार्न खा के निकल आते है।

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

मनोविज्ञान एवं शब्दों की जादूगरी

एक दिन मैं अर्जेंटीना गया था यूं ही उडते हुये एक रात को अर्जेंटीना के ब्यूनॉस एयर्स शहर सुबह सुबह पहुच गया था वहां की खूबसूरत वादियों में खो गया था वास्तव में अर्जेंटीना का ब्यूनास एयर्स शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिये पहचाना जाता है।

यहां चूहे से लेकर खरगोश और कछुये से लेकर हांथी शेर भालू सभी प्रकार के जीव जंतु पाये जाते है।

एक दिन ब्यूनास कि सिटी बस में यात्रा करते हुये वाचनालय की ओर जा रहा था तभी बस में बैठे हुये एक सहयात्री से बातों ही बातों में ब्यूनास की प्राकृतिक सुंदरता और जानवरों की बातें करने लगा।

हम बातों बातों में अच्छे मित्र हो गये थे मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरा उसका रिश्ता आज और अभी कुछ पलों का नहीं जन्मों जन्मों का रिश्ता हो और वह एक महिला मित्र थी सुंदरता की बेमिशाल मूरत थी उसकी नीली नीली आंखें मुझे बहुत आकर्षित कर रहीं थी।

उसकी काया  चांद जैसी सफेदी की चादर से ढकी हुयी थी और खूबसुरत चेहरे में चांद का दाग था काले तिल के रूप में जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहा था।

अब तक मेरा मन उसकी तरफ आकर्षित हो चुका था मुझे भी ज्ञात नहीं कि वह मुझसे ही इतनी बातें क्यूं किये जा रही थी उसने बातों बातों में ब्यूनास शहर के लूजान नामक जू की चर्चा की वह कहने लगी मैं वहीं जा रही हूं क्या तुम मेरे साथ चलोगे।

उसने शक्कर जैसी मीठी आवाज में मनमोहक प्यार की चासनी मिलाते हुये कहा था मैं क्या नारद भी होते तो हे प्रिये कह के तैयार हो जाते।

मैने भी मन ही मन उसे 'हे प्रिये' कहा और हां में सर हिलाकर सांकेतिक हां कह दिया फिर हम बस से उतर चुके थे हल्के हल्के कदमों से वह राजकुमारी की तरह चल रही थी टाईट जींस और गुलाबी टाईट टीशर्ट में बला की खूबसूरत लग रही थी मेरा मन हिजकोले मारने लगा था परंतु मैने कुछ बुरा नहीं सोचा था मित्रता से अधिक कुछ सोच भी नहीं सकता था और सुंदरता का वर्णन करना कोई बुरा काम नहीं है जो जैसा है वैसा कहने में बुराई किस बात की गुलाब को गुलाब ही तो कहेंगें।

वह मेरी तरफ चेहरा घुमाकर अपनी नीली नीली आंखें मेरी काली काली सफेद आवरण की आंखों में झांककर बोली पता है तुम्हें मैं यहां क्यूं आयी हूं।

मुझे क्या पता मैं तो आपके साथ सैर करन आ गया इतनी सुंदर हो तो मेरी सैर सपाटा भी खूबसूरत हो गयी वह कहने लगी अरे बुद्धू यहां हम शेर की सवारी करते है मैं अचरज में पड गया कि अबतक एक ही कहानी पढी थी कि भारत राष्ट्र में भरत नाम के वीर बालक ने शेर के दांत गिन लिये थे और शदियों से उसकी वीरता के चर्चे है।

अब इस वीरांगना का क्या नाम है अबतक तो मैने रानी लक्ष्मीबाई कर्मावती जैसी वीरांगनाओं को जानता था लेकिन ये खूबसूरत नवयौवन की लडकी इसके पास तो तलवार भी नहीं थी सिर्फ कंधे में लटकता हुआ महरूम रंग का खूबसूरत बैग था।

मैं संकोची स्वभाव का हूं मुझे नाम से क्या मतलब सिर्फ काम से मतलब है "नाम में क्या रखा है यारों मेरा काम देखों यारों"

हम जू में प्रवेश कर चुके थे वहां एक से बढकर एक खूबसूरत कपल प्यार में मसगूल थे कोई अपनी प्रेयसी का हाथ हाथों में थामे था तो कोई हंथेलियों को हंथेलियों में भरे था और कंधों में सर रखकर हांथों से सहलाते हुये प्रेम का एहसास कर रहे थे झाडियों के बीच में मैने वहां प्रेम की बरसात देखी जो प्रेम हमारे यहां वर्जित है धूम्रपान की तरह सार्वजनिक स्थान पर करने पर दो सौ रूपये का जुर्माना है और इज्जत का सवाल है साहब इसलिये बडे रहीश लोगों के लिये फाईव स्टार है और वही से किसी कालगर्ल का नाम सामने आ जाता है बडे लोग फिर भी पैसे की हनक में इज्जत बचाने में कामयाब हो जाते है "ये है मेरा इंण्डिया"

हां तो हम शेर की सवारी की बात कर रहे थे अचानक से मेरी नजर पडी अरे यहां तो वास्तव में लोग शेर की सवारी कर रहे थे मैं आश्चर्यचकित हो गया कि ये कहां आ गया मैं वीरो के संसार में इतने सारे वीर वीरांगनायें और खूंखार बब्बर शेरों का सर नीचे झुका हुआ है ऐसा लग रहा है शेर बब्बर शेर शर्मिंदा हो रहे है और इंसान ने इन बब्बर शेरों पर विजय प्राप्त कर ली हो।

एक बार मुझे शक हुआ ये शेर है भी या नहीं कहीं आर्टिफिशियल तो नहीं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से तो नहीं चलते जैसे ही मैने छू कर देखा हल्की सी गुडगुडाहट की आवाज आयी छुवन से एहसास हुआ कि वास्तव में शेर नहीं बब्बर शेर ही है।

फिर मैने विचार किया कि क्या मैं भी सवारी कर सकता हूं वहां खडे एक ब्यक्ति ने कहा "यस व्हाय नाट" मेरे लिये अजूबा फिर वो बोला "ये हैव पेड सर्विस चार्च" अब ये क्या बला थी मैने कहा "हाऊ मैनी?"।

उसने कहा सिक्सटीन हंड्रेड" मै समझ चुका था भारतीय मुद्रा में सोलह सौ रूपये देने थे और शेर की सवारी करनी थी बातों ही बातों में पता चला कि इन बब्बर शेरों को ट्रेनर द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है कि यह इंसान के साथ अच्छा ब्यवहार करें और खूंखार बब्बर शेरों को सीधा वा सरल बना दिया जाता है।

जो खूंखार हैं उन्हें इंसान ने ट्रेनिंग देकर सीधा सरल सहज बना दिया और वह शिकार नहीं करते बल्कि इंसान उस पर सवारी करने लगा यही मनोविज्ञान है और इंसान की ताकत बुद्धि विवेक का परिचय है।

मैं सोच रहा हूं कि खूंखार शेरों को सहज सरल बनाया तो क्या ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं है इंसान के पास जो खूंखार आतंकवादियों नक्सलवादियों निर्लज्ज बलात्कारियों कमीने लोफरों को और किसी खाश विचारधारा के नशे से प्रेरित मेरे उद्दंड साथियों को सहज सरल बनाया जा सके।
जब कुछ आतंकवादी नक्कसलवादी ट्रेनिंग के द्वारा भावनाओं को हिंसात्मक बनाकर एक इंसान को हैवान बना देते है तो हमारी सरकारें कोई ऐसी ट्रेनिंग की खोज क्यूं नहीं करती कि हम हैवान को इंसान बना सकें क्यूंकि भले ओसामा को मार दो कसाब को फांसी दे दो अफजल गुरू को लटका दो फिर भी बगदादी का जन्म हो जाता है और पेशावर से लेकर कोकराझार तक मासूमों निर्दोषों की हत्यायें हो रही है कुछ तो हल निकालना चाहिये आप सभी विचार कर सकते हैं।

नोट - मैं अर्जेंटीना नहीं गया  सिर्फ एक अखबार में ब्यूनास शहर के लुजान जू में हो रही शेर की सवारी की खबर पढी थी और उस खबर के आधार पर सब काल्पनिक है आज मैं कहूं कि मैं अर्जेंटीना गया था तो आपको शक होगा हो सकता है आप कहो कि एयरटिकट दिखाओ लेकिन अगर कोई बडी उम्र का बडे ओहदे का ब्यक्ति ऐसे ही खबर पढ कर कल्पनाओं के महासागर में डुबोकर पूरे विश्व की सैर करा दे तो क्या आप दूध में कितना पानी मिला है बिना मशीन के जांच कर पायेंगें इसलिये आप जिसे भी पढो जिसका भी अनुकरण करो सबसे पहले अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग करो ताकि आप छले ना जाओ शब्दों पर पैनी निगाह रखिये और भविष्य का ध्यान रखिये।