हमारे धर्म का कोई अपमान करे हमारे देवी देवताओं की मूर्ति के साथ कोई छेडछाड करे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते और होना भी यही चाहिये।
क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि हम स्वयं अपने देवी देवताओं का कितना अपमान करते है अगरबत्ती के पैकेट से लेकर दीवाली के पटाखों में हमारे देवी देवताओं के चित्र बनकर आते है और हम उन पटाखों को धडाम धडाम धडाम छुटाते है।
अगरबत्ती खत्म हो गयी पैकेट बेकार हो गया उसमें भगवान का चित्र रहता है हम उस पैकेट को कहा फेकते है कूडेदान या किसी रास्ते में और वह पैकेट राह चलते राहगीरों के पैरों तले आता है।
क्या इन तथ्यों पर भगवान के इस अपमान पर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के द्वारा अपने ही धर्म का अनजाने में किये जाने वाले अपमान पर किसी बडी पार्टी किसी सेक्युलर या कम्युनल या किसी नवयुवक या वह मैं ही क्यूं ना हूं हमारा ध्यान जाता है क्या ?
वह क्यूं नहीं होता क्यूंकि इन मुद्दों से राजनीति नहीं हो सकती होगी भी तो टुटपुंजिहा राजनीति इससे धन नहीं ऐंठा जा सकता है यह तो समाज सुधार जनजागरूकता का काम है इनके मालिकों का अतापता नहीं रहता है और किसी दूसरे धर्म से हो यह भी आवश्यक नहीं कुलमिलाकर के एक बडा राजनैतिक मुद्दा नहीं बन सकता।
इस आधार पर हम किसी को असली सनातनी नकली सनातनी भी नहीं घोषित कर सकते है सब काम धाम नाम घोषणाओं का है अपने अस्तित्व को बडा दिखाने का है कोई जनसंख्या में बडा दिखाना चाहता है तो कोई क्वालिटी में धर्म के नाम पर बडे बडे नेता बडे बडे भाषण कभी बच्चे ज्यादा पैदा करो कभी बच्चे कम पैदा करो जो है उनका कुपोषण उनकी शिक्षा उनकों रोजगार कोई दे नहीं पा रहा किसान से लेकर नवयुवक तक अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते है।
आप ये मूर्ति देख रहे है इसे हमारे द्वारा ही एक कचडे के ढेर के पास फेंका गया है ये टूट चुकी है अब इनकी पूजा नहीं कर सकते क्या पता इन्होंने प्राण प्रतिष्ठा करायी हो या नहीं और फेकने के समय भगवान से अनुनंय विनय की हो या नहीं कि अब प्रभु आप वापस जाओ और इस मूर्ति को क्या ऐसी अनेको मूर्तियां दिख जायेंगी जिनका स्थान कूडादान नहीं है लेकिन हमारे धर्म के हमारे भगवान के सम्मान की लडाई हम स्वयं से नहीं लड पाये बल्कि दूसरों से लडने में व्यस्त अधिक रहे क्यूंकि सब वर्चस्व की बात है।
महान सिद्ध करने के लिय हम दूसरों को नीचा दिखाते है यह कहानी सभी की है वह किसी भी धर्म से हो हम स्वयं में सुधार नहीं करते दूसरों में कमियां निकालते है और अपमान के मुद्दे पर राजनीति करना हमारे राष्ट्र का सौभाग्य है विकास का दुर्भाग्य है रोजगार के लालों को रोजगार के लाले है दो वक्त की रोटी के टोटे है फिर भी हम महान है।
नोट- पीके जैसी मूवी बनने के पीछे कारण हम ही है ऐसी बहुत सी मूर्तियां और भगवान के हालात आपको दिख जायेंगी बस सिर्फ राजनीति करना अलग बात है।
क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि हम स्वयं अपने देवी देवताओं का कितना अपमान करते है अगरबत्ती के पैकेट से लेकर दीवाली के पटाखों में हमारे देवी देवताओं के चित्र बनकर आते है और हम उन पटाखों को धडाम धडाम धडाम छुटाते है।
अगरबत्ती खत्म हो गयी पैकेट बेकार हो गया उसमें भगवान का चित्र रहता है हम उस पैकेट को कहा फेकते है कूडेदान या किसी रास्ते में और वह पैकेट राह चलते राहगीरों के पैरों तले आता है।
क्या इन तथ्यों पर भगवान के इस अपमान पर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के द्वारा अपने ही धर्म का अनजाने में किये जाने वाले अपमान पर किसी बडी पार्टी किसी सेक्युलर या कम्युनल या किसी नवयुवक या वह मैं ही क्यूं ना हूं हमारा ध्यान जाता है क्या ?
वह क्यूं नहीं होता क्यूंकि इन मुद्दों से राजनीति नहीं हो सकती होगी भी तो टुटपुंजिहा राजनीति इससे धन नहीं ऐंठा जा सकता है यह तो समाज सुधार जनजागरूकता का काम है इनके मालिकों का अतापता नहीं रहता है और किसी दूसरे धर्म से हो यह भी आवश्यक नहीं कुलमिलाकर के एक बडा राजनैतिक मुद्दा नहीं बन सकता।
इस आधार पर हम किसी को असली सनातनी नकली सनातनी भी नहीं घोषित कर सकते है सब काम धाम नाम घोषणाओं का है अपने अस्तित्व को बडा दिखाने का है कोई जनसंख्या में बडा दिखाना चाहता है तो कोई क्वालिटी में धर्म के नाम पर बडे बडे नेता बडे बडे भाषण कभी बच्चे ज्यादा पैदा करो कभी बच्चे कम पैदा करो जो है उनका कुपोषण उनकी शिक्षा उनकों रोजगार कोई दे नहीं पा रहा किसान से लेकर नवयुवक तक अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते है।
आप ये मूर्ति देख रहे है इसे हमारे द्वारा ही एक कचडे के ढेर के पास फेंका गया है ये टूट चुकी है अब इनकी पूजा नहीं कर सकते क्या पता इन्होंने प्राण प्रतिष्ठा करायी हो या नहीं और फेकने के समय भगवान से अनुनंय विनय की हो या नहीं कि अब प्रभु आप वापस जाओ और इस मूर्ति को क्या ऐसी अनेको मूर्तियां दिख जायेंगी जिनका स्थान कूडादान नहीं है लेकिन हमारे धर्म के हमारे भगवान के सम्मान की लडाई हम स्वयं से नहीं लड पाये बल्कि दूसरों से लडने में व्यस्त अधिक रहे क्यूंकि सब वर्चस्व की बात है।
महान सिद्ध करने के लिय हम दूसरों को नीचा दिखाते है यह कहानी सभी की है वह किसी भी धर्म से हो हम स्वयं में सुधार नहीं करते दूसरों में कमियां निकालते है और अपमान के मुद्दे पर राजनीति करना हमारे राष्ट्र का सौभाग्य है विकास का दुर्भाग्य है रोजगार के लालों को रोजगार के लाले है दो वक्त की रोटी के टोटे है फिर भी हम महान है।
नोट- पीके जैसी मूवी बनने के पीछे कारण हम ही है ऐसी बहुत सी मूर्तियां और भगवान के हालात आपको दिख जायेंगी बस सिर्फ राजनीति करना अलग बात है।